Sunday, September 8, 2024
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भटकी समाज का भटकना जारी

शासकीय योजनाएं कागज पर ही सिमट गई
गोंदिया. आजादी के बाद भारत कंप्यूटर, इंटरनेट, सैटेलाइट ट्रांसमिशन आदि के क्षेत्र में तेजी से प्रगति की ओर बढ़ रहा है. लेकिन भटकी जनजातियों का विचरण आजादी के बाद भी जारी है. सरकार इस भटकी जनजाति के विकास के लिए कई योजनाएं लागू कर रही है. लेकिन कई योजनाएं केवल कागजों पर होने के कारण उनके जीवन स्तर में उम्मीद के मुताबिक सुधार नहीं हुआ है. परिणामस्वरूप इस समाज का भटकना आज भी जारी है.
पूर्वी विदर्भ में फासेपारधी, बैरागी, भाट, नंदीबैल, सरोदी, गोपाल, वडार, जोगी, पांगुल आदि भटकी जनजातियों के लोग रहते हैं. इस भटकी जनजाति के लोग साल के आठ महीने घूमने में बिताते हैं. वे अपने तंबू लेकर एक गांव से दूसरे गांव घूमते रहते हैं. इस भ्रमण में गाय, मुर्गियां, कुत्ते, साइकिलें, बच्चे तथा जीवन की अन्य सामग्री भी अपने साथ ले जाते हैं. इन आठ महीनों के दौरान ये भटकी जनजाति पूर्वी विदर्भ के गोंदिया, भंडारा, चंद्रपुर, गढ़चिरोली, नागपुर जिलों के गांवों में रहते हैं. इस भटकी जनजाति के लोग आज भी आगे नहीं बढ़ पाए हैं. यह समाज भूमिहीन है. इसलिए इस समुदाय के पास आय का कोई स्रोत नहीं है. घर में गरीबी के कारण इन लोगों के सामने जीवन जीने की समस्या उत्पन्न हो गई है. कई लोगों के पास राशन कार्ड, जाति प्रमाण पत्र, आधार कार्ड नहीं हैं. उनके पास बैंक खाते नहीं हैं. जमा हुए पैसे अपने पास रखते है. इन लोगों के पास कोई दस्तावेज नहीं होने के कारण इन्हें किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल पाता है. इसलिए वे सरकारी योजना से वंचित हैं. क्योंकि घर में कोई पढ़ा-लिखा नहीं है, इसलिए शैक्षणिक माहौल नहीं है. अतः शिक्षा का स्तर बहुत निम्न है. इस बीच सरकार की ओर से इस भटकी जनजाति के नागरिकों के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. लेकिन संबंधित विभाग के कुछ अधिकारियों व कर्मचारियों की समय लेने वाली नीति के कारण कई योजनाएं सिर्फ कागजों पर ही क्रियान्वित होती हैं. इस बीच इस भटकी जनजाति को हमेशा के लिए रोकने की जरूरत है और इसके लिए सरकार को इन भटकी जनजातियों को स्थायी आय निर्माण के साधन उपलब्ध कराने की जरूरत है.

शिक्षा से कोई लेना-देना नहीं
यह परिवार पीढ़ियों से अशिक्षित है क्योंकि पहले से ही परिवार में कोई भी शिक्षित नहीं हुआ है. कई बार स्कूल में नाम दर्ज होने पर भी गांव के नजदीक के स्कूल, आश्रम शालाओं में नाम लिखाया जाता है. लेकिन बाद में भटकना फिर शुरू हो जाता है और स्कूल छूट जाता है. इसलिए उनका स्कूल से कोई लेना-देना नहीं है.

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