सरकारी जिला दूध संग्रहण केंद्र खाली
गोंदिया. जिले में बड़ी मात्रा में दूध का उत्पादन होता है. लेकिन यह दूध जिला दुग्ध संघ को न मिल कर निजी कंपनियों के गले जा रहा है. सरकार ने इसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है. परिणाम स्वरूप अब जिला दुग्ध संघ से दूध गायब हो गया है. सरकारी दूध संग्रहण केंद्र भी प्रभावित हुआ है और सरकारी दूध डेयरी, सरकारी दुग्ध संस्थान और जिला दुग्ध संघ का दूध संग्रह केंद्र भी बंद हो गया है. उल्लेखनीय यह है कि सड़क अर्जुनी तहसील के कोहमारा में सरकारी दूध शीतलन केंद्र पिछले तीन से चार वर्षों से बंद है और वहां की सामग्री और मशीनरी वर्तमान में धुल खा रही हैं. जिससे सरकार को भारी नुकसान हुआ है.
सरकार जिला दुग्ध संघ के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी संस्थाओं के माध्यम से दूध खरीदती थी, जिसके लिए सरकार को दूध का पैसा मिलता था. अतः संपूर्ण दुग्ध व्यवसाय पर सरकार का नियंत्रण था. लेकिन 2004 से सरकार ने दूध को अपने नियंत्रण से मुक्त कर दिया है, जिससे इस व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा पैदा हो गई है. जैसे ही निजी कंपनियां प्रतिस्पर्धा में उतरीं, जिला दुग्ध संघ उन कंपनियों की बढ़ी हुई दरों के सामने खुद को कायम नहीं रख सके. दूसरी ओर सरकार ने दूध कारोबार को उदार तो बना दिया है, लेकिन सरकारी दर में बढ़ोतरी नहीं की है. इसका फायदा उठाते हुए निजी कंपनियों ने दूध के दाम बढ़ा दिए. इस बीच जैसे-जैसे दूध उत्पादक किसानों को निजी कंपनियों से अधिक पैसा मिलने लगा, किसानों ने उन कंपनियों को दूध बेचना शुरू कर दिया. जिससे जिला दुग्ध संघ को अंतिम सांस लेनी पड़ रही है. ऐसे में कभी-कभी दुग्ध संघ से प्रतिदिन 30 से 35 हजार लीटर दूध सरकारी डेयरी और दुग्ध केंद्र के माध्यम से सरकार को जाता था. वहीं अब यह 200 से 300 लीटर तक आ गया. इसमें इसके परिवहन की लागत दूध से अधिक लगने लगी. परिणामस्वरूप दुग्ध संघ बंद होने की कगार पर है. जिले में सरकारी दूध डेयरी, दूध केंद्र से दूध गायब हो गया है.
सकारात्मक रुख अपनाना जरूरी
दुग्ध उत्पादक किसानों के लिए दुग्ध संघ का होना आवश्यक है. क्योंकि भविष्य में यदि दूध की खरीद-बिक्री पर निजी कंपनियों का एकाधिकार बना तो इसका असर आम दूध उत्पादकों पर पड़ेगा. इसलिए सरकार को दुग्ध संघों की स्थिति को लेकर सकारात्मक रुख अपनाना जरूरी है.
रेखलाल टेंभरे, संचालक, जिला मध्यवर्ती बैंक
जैसे-जैसे किसानों को निजी कंपनियों से अधिक दाम मिल रहे हैं, ग्रामीण क्षेत्रों से दुग्ध संघों और सरकारी दूध संग्रह केंद्रों तक दूध की आपूर्ति धीरे-धीरे कम होती जा रही है. अंततः जब 200 से 300 लीटर दूध ही एकत्रित हो रहा था तो सरकार ने संग्रहण जारी रखने का आदेश दिया ताकि किसानों को नुकसान न हो. लेकिन समय के साथ किसानों से दूध आना बंद हो गया. वहीं डेयरी बंद होने से कोई बेरोजगार नहीं हुआ. सभी कर्मचारियों को समायोजित कर दिया गया.
पी. एस. बोरसे, व्यवस्थापक, शासकीय दूध डेयरी, गोंदिया