Saturday, July 27, 2024
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पक्षियों की 35 प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर

पक्षी विशेषज्ञों ने जताई आशंका : पक्षियों का संरक्षण जरूरी
गोंदिया. नागरिकों की उदासीनता, बढ़ते वनों की कटाई और औद्योगीकरण का विभिन्न पक्षियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है और विदर्भ में पक्षियों की 415 प्रजातियों में से 35 प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं. पक्षी विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि अगर समय रहते पक्षियों के संरक्षण के लिए कदम नहीं उठाए गए तो जल्द ही ये पक्षी डायनासोर की तरह तस्वीरों में नजर आएंगे.
वन विभाग को नागरिकों और पक्षी प्रेमियों की मदद से जागरूकता पैदा करने और अत्यधिक संवेदनशील श्रेणी में आने वाली प्रजातियों के संरक्षण के लिए विशेष गतिविधियां चलाने की आवश्यकता है. यदि पक्षी घर की ओट में आ जाएं तो उन्हें भगाएं नहीं, दाना या एक मुट्ठी अनाज डाल दें. पक्षी विशेषज्ञों ने अपील की है कि विलुप्त हो रहे इन पक्षियों के संरक्षण के लिए पहल करें, इन्हें इंसानों की मदद की भी जरूरत है. बढ़ते औद्योगीकरण के कारण दुनिया के सामने ग्लोबल वार्मिंग की समस्या खड़ी हो रही है. इसका असर पूरे मौसमी चक्र पर पड़ रहा है. तीनों मौसमों की तीव्रता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है और इसका असर पक्षियों के दैनिक जीवन पर पड़ रहा है. जिससे गौरैया, कबूतर, सालुंखी और आमतौर पर विदर्भ में पाए जाने वाले प्रवासी पक्षियों का जीवन चक्र प्रभावित हो रहा है. आमतौर पर पक्षियों का प्रजनन काल मार्च से जुलाई तक होता है. लेकिन प्रकृति में बदलाव और मानव अतिक्रमण के कारण इन पक्षियों की प्रजनन प्रक्रिया प्रभावित हुई है. इसलिए नए पक्षियों की पैदावार पर सवाल उठाया गया है. विदर्भ में बड़ी संख्या में पाए जाने वाले गिद्ध, सारस, मालधोक, रणपिंगला, हिरवामुनिया और प्रवासी पक्षियों की संख्या तेजी से घट रही है.

गिद्ध नहीं दिख रहें
विदर्भ में गिद्धों की तीन प्रजातियां पाई गईं, जो प्रकृति के सफाईकर्मी की भूमिका निभाती थीं. लेकिन खाद्य श्रृंखला में गड़बड़ी, अवैध शिकार, जहर के कारण इनकी संख्या में कमी आई है. वृद्ध जानवरों की बिक्री के कारण इन पक्षियों को बड़े पैमाने पर खाना नहीं मिल पाया. ग्लोबल वार्मिंग के साथ-साथ बढ़ते शहरीकरण का असर भी इन पक्षियों पर पड़ रहा है. पेड़ों की संख्या दिन-ब-दिन कम होती जा रही है. इसलिए इन पक्षियों को लंबे जंगलों में आश्रय ढूंढना पड़ता है और भोजन के लिए भटकना पड़ता है.

सारस की संख्या हो रही कम
सारस पक्षी गोंदिया जिले में रहते हैं और सारस राज्य में केवल गोंदिया और भंडारा जिलों में ही दर्ज किए जाते हैं. सारस विशेष रूप से मध्यप्रदेश राज्य की सीमा से लगे गोंदिया जिले में बाघ नदी के किनारे पाए जाते हैं. इस बीच सारस की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जिला प्रशासन की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं. लेकिन सारस की संख्या हर साल कम हो रही है.

ध्यान देना जरूरी
अकेले गोंदिया जिले में पक्षियों की लगभग साढ़े तीन सौ प्रजातियां हैं. लेकिन विशेष रूप से पक्षियों के अलग सर्वेक्षण के अभाव में इसकी उपेक्षा की जाती है. जिले में मौजूदा जलस्त्रोतों की गुणवत्ता घट रही है. वहीं तालाबों में अतिक्रमण, पैदा होने वाले अखाद्य पौधों और फसलों पर कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग के कारण इन पक्षियों को भोजन नहीं मिल रहा है. परिणामस्वरूप पक्षियों की संख्या दिन-ब-दिन कम होती जा रही है. इस पर ध्यान देना जरूरी है.
रूपेश निंबार्ते, पक्षीमित्र, अध्यक्ष, हिरवल बहुउद्देश्यीय संगठन

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