मरीजों पर दवा खरीदने का बोझ : कहां जा रहा है करोड़ों का फंड
गोंदिया. सुरक्षित प्रसव व गर्भवती माताओं की सुरक्षा के लिए जननी सुरक्षा कार्यक्रम चलाया जा रहा है. इसके लिए करोड़ों रु. का फंड दिया जाता है. सुरक्षित डिलीवरी के लिए आवश्यक सभी चीजें निःशुल्क प्रदान की जाती हैं. लेकिन अगर बीजीडब्ल्यू अस्पताल में सिजेरियन ऑपरेशन करना हो तो उसके लिए जरूरी सामान मरीजों को खुद ही खरीदकर लाना पड़ता है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इस योजना के लिए आने वाला करोड़ों रु. का फंड कहां जा रहा है.
सरकार की ओर से माता-शिशु सुरक्षा कार्यक्रम इसलिए चलाया जा रहा है ताकि प्रसव के दौरान और शिशु के एक माह का होने तक माता-बच्चे की सुरक्षा पर कोई खर्च न हो. इस कार्यक्रम के तहत माता व शिशु सुरक्षा निःशुल्क प्रदान की जाती है. जरूरत पड़ने पर सरकारी अस्पतालों में बिना किसी शुल्क के माताओं का प्रसव कराया जाता है. सर्जरी और आपूर्ति भी सरकार द्वारा प्रदान की जाती है. गर्भवती महिलाओं को निःशुल्क दवाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं. इसमें आयरन और फोलिक एसिड जैसे पूरक भी शामिल हैं. सामान्य प्रसव के मामले में तीन दिनों तक और सिजेरियन प्रसव के मामले में सात दिनों तक मुफ्त भोजन के साथ-साथ मुफ्त रक्त परीक्षण, मूत्र परीक्षण, यदि आवश्यक हो तो अल्ट्रा सोनोग्राफी और गर्भवती माताओं के अन्य परीक्षण दिए जाते है. प्रसव के 30 दिन बाद तक मां और नवजात शिशु के लिए आवश्यक सभी दवाएं निःशुल्क प्रदान की जाती हैं. लेकिन बाई गंगाबाई अस्पताल में दवाएं उपलब्ध नहीं होने से यह रोजमर्रा की बात हो गई है. यहां सिजेरियन डिलीवरी के लिए कुछ दलाल भी सक्रिय हैं और उनके माध्यम से सर्जरी के लिए दो हजार रु. वसूले जाते हैं. दवा भी बाहर से खरीदने की सलाह दी जाती है. एक तरफ जब सरकार माता-शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के तहत करोड़ों रु. का फंड मुहैया करा रही है तो सवाल यह है कि आखिर यह फंड जाता कहां है. इसे हमेशा से नजरअंदाज किया जा रहा है. अगर इस तरह की उच्चस्तरीय जांच हुई तो बड़ी गड़बड़ी की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता.
इस तरह काम करता है ब्रोकर सिस्टम
मरीजों के परिजनों को अस्पताल के बाहर से दवा लाने की सलाह दी जाती है. यह भी कहा गया है कि उन दवाओं को तुरंत देने की जरूरत है. इसके लिए उन्हें एक कागज के तुकड़े पर दवा का नाम लिखकर दिया जाता है. अस्पताल के दरवाजे के बाहर भी कुछ दलाल इंतजार करते रहते हैं. वह एक चिठ्ठी देती है जिसमें लिखा होता है कि वह दवाएं खुद लाएगी. फिर दवा भी लाते हैं. इतनी बड़ी घटना अस्पताल परिसर में पिछले कई महीनों से चल रही है. सवाल उठ रहा है कि अस्पताल प्रशासन की नजर इस पर कैसे नहीं पड़ी.
रक्त के लिए संघर्ष
बीजीडब्ल्यू अस्पताल में रक्त के लिए संघर्ष करना आम बात हो गई है. प्रसव के दौरान गर्भवती माताओं को रक्त की आपूर्ति निःशुल्क और गैर-प्रतिपूर्ति योग्य है. लेकिन अस्पताल में बिना रिप्लेसमेंट के खून नहीं दिया जाता. इसमें पैसा भी खर्च होता है. नतीजा यह होता है कि मरीज के परिजन बाहरी ब्लड बैंकों से 2,000 रु. प्रति बैग के हिसाब से खून लाते हैं.