तत्कालीन सीईओ का प्रयोग विफल
गोंदिया. जिला परिषद में कर्मचारियों की कमी और कई विभागों में अधिकारियों के रिक्त पद होने के कारण पेंडेंसी काफी हद तक बढ़ गई है. 2 साल पहले सीईओ के पद पर रहे राजेश खवले ने जीरो पेंडेंसी पहल लागू की थी. वह गतिविधि बंद कर दी गई है और आर्थिक बोझ बढ़ गया है.
जिला परिषद को मिनी मंत्रालय के नाम से जाना जाता है. जिले के ग्रामीण विकास में जिला परिषद की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है. ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों, लाभार्थियों के लिए विभिन्न योजनाओं के साथ-साथ ग्राम विकास की कई योजनाएं जिला परिषद के माध्यम से क्रियान्वित की जाती हैं. जिला परिषद में विभिन्न विभाग कई योजनाओं को लागू करने के लिए जिम्मेदार थे. लेकिन संबंधित कार्य की फाइलें तत्काल निर्णय के बिना लंबे समय तक पड़ी रहती थीं. जिससे विकास कार्य बाधित होता था. 2 साल पहले अतिरिक्त जिलाधीश राजेश खवले प्रभारी मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में जिला परिषद में शामिल हुए और गोंदिया जिला परिषद में शून्य पेंडेंसी पहल को लागू करना शुरू किया. खवले ने जिला परिषद के सभी अधिकारियों व कर्मचारियों को निर्देश दिया कि जिला परिषद के किसी भी अनुभाग में कोई भी फाइल एक घंटे से अधिक समय तक लंबित नहीं रहें और इसका वास्तविक कार्यान्वयन भी शुरू हो गया है. एक अलमारी जो लंबित फाइलों को रखने के लिए बनाई गई थी. इसमें कोई भी लंबित फाइल नहीं दिखी. पहले जिला परिषद में हर विभाग से फाइलें आती थीं और उन फाइलों को निर्णय के लिए कुछ समय के लिए रखा जाता था. इसलिए विकास कार्य बाधित हो गया. खवले की जीरो पेंडेंसी पहल से विकास कार्यों को गति देने में मदद मिली. लेकिन राजेश खवले के प्रभार छोड़ने के बाद स्थिति जस की तस है. फिलहाल हर विभाग में लंबित विषय हैं. अकारण फाइल रोके रहने से मिनी मंत्रालय में काम के लिए आने वाले नागरिकों को अड़ंगेबाजी की नीति का सामना करना पड़ रहा है.
मिनी मंत्रालय में बढ़ी ‘पेंडेंसी’!
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