नागपुर : बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने एक शख्स की याचिका खारिज कर दी। शख्स ने अपने नाबालिग बेटे के डीएनए टेस्ट का आदेश देने की अपील की थी। याचिकाकर्ता का दावा है कि वह उसकी जैविक संतान नहीं है इसलिए वह बच्चे को गुजारा भत्ता नहीं देगा। हाई कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद याचिका ठुकरा दी।
लड़के ने अपने शैक्षिक खर्च के लिए पिता से 5,000 रुपये का मासिक गुजारा भत्ता मांगा था लेकिन पिता ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह उसकी असली संतान नहीं है। राजुरा में एक जूडिशल मैजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी ने बेटे को नागपुर में रीजनल फरेंसिक साइंस लैब में डीएनए टेस्ट कराने का निर्देश दिया था लेकिन चंद्रपुर सेशन कोर्ट ने 16 नवंबर 2021 को इसे खारिज कर दिया।
‘बच्चे की मानसिकता को पहुंच सकता है आघात’
52 साल के याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में सेशन कोर्ट के फैसले को चुनौती दी। जस्टिस गोविंदा सनप ने कहा कि याचिकाकर्ता नौकरीपेशा है फिर भी अपने दायित्व से बचने की कोशिश कर रहा है। हाईकोर्ट ने कहा कि किसी बच्चे का पिता कौन है, यह पता करने के लिए सीधे डीएनए टेस्ट का आदेश देना बच्चे की मानसिकता पर आघात पहुंचा सकता है। कोर्ट के अनुसार, इससे सामाजिक रूप से बच्चे के सामने भविष्य में कई चुनौतियां भी खड़ी कर सकता है। यह कोई ऐसा विलक्षण मामला नहीं है जिसमें बच्चे के डीएनए टेस्ट का आदेश देने की जरूरत हो। इसी के साथ कोर्ट ने पिता की याचिका ठुकरा दी।
क्या है मामला?
52 साल का याचिकाकर्ता वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड में कार्यरत है, उसने 15 अप्रैल 2006 में उसी ऑफिस में वर्किंग एक महिला से शादी की और 27 अप्रैल 2007 में उनका एक बेटा हुआ। हालांकि बाद में उसने पत्नी को छोड़ दिया। बाद में महिला ने लोअर कोर्ट में पति से गुजारा भत्ते के लिए याचिका दायर की।