प्रशासन की ओर से साधारण पूछताछ भी नहीं
गोंदिया. प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी गणेश मूर्तियों की बिक्री पर प्रतिबंध के बावजूद शहर के चौराहों पर बड़ी संख्या में मूर्तियां स्थापित की गईं और मूर्ति की दुकानों पर बेची गईं. जबकि प्रकृति प्रेमियों और स्थानीय कारीगरों को संदेह था कि मिट्टी की मूर्तियों की आड़ में प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां भी बेची जा रही थीं. लेकिन संबंधित विभाग ने प्रतिबंध लगाने का निर्देश नहीं दिया और यहां तक कि एक साधारण जांच भी नहीं की गई. इसलिए मिट्टी की मूर्तियां बनाने वाले कारीगरों ने रोना शुरू कर दिया है कि मिट्टी की मूर्तियां ही रह गई हैं.
जल प्रदूषण को रोकने के लिए प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इन मूर्तियों को बनाने और इन्हें बेचने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की जिम्मेदारी हर शहर में नगर प्रशासन की होती है. इसके मुताबिक उम्मीद थी कि गोंदिया शहर में नगर परिषद प्रशासन प्लास्टर की मूर्तियां बेचने वालों को ढूंढेगा और कार्रवाई करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. शहर में गणेश उत्सव के दस दिन पहले से ही ट्रकों से बड़ी संख्या में गणेश प्रतिमाएं बिक्री के लिए लाई जाती है. शहर के मुख्य चौराहे पर कुछ विक्रेता मुख्य सड़क पर मूर्तियां बेचने का स्टॉल लगाते हैं. मूर्ति के बारे में पूछताछ करने पर ग्राहकों को यह कहकर गुमराह किया गया कि यह शाडू मिट्टी की मूर्ति है. प्लास्टर से बनी मूर्ति दिखने में सुंदर और आकर्षक है. इसलिए यह ग्राहकों के बीच लोकप्रिय हो गया. उसमें मूर्ति विक्रेताओं ने गणेश स्थापना के दिन कीमतें कम करके मूर्तियां बेचीं ताकि सभी मूर्तियां जल्द से जल्द बिक सकें. ऐसे में कई ग्राहक प्लास्टर की मूर्तियां खरीदने के लिए दौड़ पड़े. वहीं शहर के कई कुम्हारों द्वारा बनाई गई मिट्टी की मूर्तियों को ग्राहकों ने नजरअंदाज कर दिया. प्लास्टर की मूर्तियों के कारण मिट्टी की मूर्तियां उम्मीद के मुताबिक नहीं बिकीं. परिणामस्वरूप यह भी देखा गया कि स्थानीय कारीगरों द्वारा किए गए प्रयास और खर्च व्यर्थ गए.
शहर में बिकी प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्ति?
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