कम बारिश का असर : रबी सीजन पर पड़ेगा असर
गोंदिया. गोंदिया, भंडारा और गढ़चिरोली जिलों में कृषि के लिए वरदान बनी इटियाडोह परियोजना इस वर्ष बारिश की कमी के कारण पूरी तरह नहीं भर पाई है. पिछले वर्ष अगस्त माह में यह प्रकल्प ओवरफ्लो हो गया था. लेकिन इस वर्ष 83 प्रश. जल भंडारण होने के कारण रबी सीजन में धान की फसल प्रभावित होने की आशंका है.
ऊंची पहाड़ियों और प्रकृति की गोद में बना इटियाडोह बांध अर्जुनी मोरगांव तहसील का गहना कहा जाता है. 1965 में मिट्टी और पत्थर से बनाए गए महाराष्ट्र के इस बांध पर प्रकृति ने खूब खूबसूरती लुटाई है. इस बांध में पानी के भंडार से गोंदिया और गढ़चिरोली जिलों में कृषि की सिंचाई होती है. जंगलों और पहाड़ियों के बीच बसा यह प्रकल्प पर्यटकों की पहली पसंद है. साथ ही इस प्रकल्प से बड़ी मात्रा में कृषि की सिंचाई होती है. पिछले साल अगस्त माह में बांध लबालब हो गया था. लेकिन इस वर्ष बारिश की कमी के कारण बांध में पानी के प्रतिशत पर असर पड़ा. अभी तक बांध में 83 प्रश. ही जल भंडारण है. इसलिए इसका असर इस साल की रबी सीजन की फसलों की सिंचाई पर पड़ेगा. यह बांध मछली पकड़ने के लिए भी प्रसिद्ध है. इस बांध में इटियाडोह जलाशय मछली व्यवसाय सहकारी समिति रामनगर के माध्यम से बांध के पानी में विशेष सामग्रियों के माध्यम से केज कल्चर परियोजना बनाई गई है. इस परियोजना के माध्यम से पिंजरे प्रणाली में मछली उद्योग किया जाता है. इस परियोजना में बीज उत्पादन के बाद तेलापी मछली का उत्पादन व बिक्री की जाती है. हालांकि तेलापी मच्छली की वृद्धि ज्यादा नहीं होती है, लेकिन इसका वजन आधा किलो तक हो सकता है. मालूम हो कि इस मछली की भारी मांग है क्योंकि यह खाने में बहुत स्वादिष्ट होती है.
इटियाडोह के झींगे की भारी मांग
इस बांध में बाहर से बीज लाकर प्रसंस्करण करके झींगा उत्पादन भी किया जाता है. उत्पादित झींगा का वजन 250 से 300 ग्राम होता है. क्योंकि यहां का झींगा स्वादिष्ट भी होता है, इसलिए इसकी मांग भी अधिक होती है. इसके साथ ही बांध में मछलियों की विभिन्न प्रजातियां भी उपलब्ध हैं और विदर्भ में इस बांध के झींगा और मच्छली की काफी मांग है.