हाथियों के झुंड ने किया था नुकसान : दर्द किससे करें साझा
गोंदिया : देश को आजाद हुए 75 साल हो चुके हैं. लेकिन जिले के ग्रामीण व दूर-दराज क्षेत्र के नागरिकों की परेशानी बनी हुई है. अर्जुनी मोरगांव तहसील के नागणडोह निवासी, जिनके आश्रय को जंगली हाथियों के झुंड ने नष्ट कर दिया था, जिसका पुनर्वास किया जाना अभी बाकी है. सरकार की ओर से भी मदद दी गई. तो, हमें अपना दर्द किससे साझा करें, ऐसा सवाल नागांडोह के नागरिकों के सामने खड़ा हो गया है.
अर्जुनी मोरगांव तहसील के तिरखुरी, मेडघाट, बोरटोला के पास नागांडोह गांव प्राचीन काल से बसा हुआ है. उस क्षेत्र के कुछ लोग नागंडोह के जंगल में जाकर मोहफुल, डिंक चुनकर, बांस काटकर और टेंभुर्णी के पत्ते तोडकर जीवनयापन कर रहे हैं. 50 वर्षों में केवल 9 घर ही हैं. गांव के सभी लोग करीब 20 एकड़ बंजर जमीन पर खेती करते हैं. इस जमीन का कोई सरकारी रिकॉर्ड नहीं है. इस गांव को रीटी गांव के नाम से जाना जाता था. इस जगह पर 9 घर, 53 नागरिक, एक कुआं, एक बोरवेल है और कोई आवागमन की व्यवस्था नहीं है. स्वास्थ्य व्यवस्था भी नहीं है. शिक्षा की कोई सुविधा नहीं है. जंगली इलाका होने के कारण रात होने के बाद हमेशा जंगली जानवरों और नक्सलियों के भय में रहना पड़ता है. इस गांव के नागरिकों ने अब तक जनप्रतिनिधियों से पुनर्वास की गुहार लगाई है. लेकिन अभी तक उन पर किसी का ध्यान नहीं गया है. इसलिए वे हालात से उबरकर जीवन जी रहे हैं.
हाथियों के झुंड ने घरों किया तहस-नहस
पिछले साल सितंबर-अक्टूबर के महीने में हाथियों के झुंड ने इस गांव में घुसकर यहां के 9 घरों को पूरी तरह तबाह कर दिया था. उनके घर और मवेशी पूरी तरह नष्ट हो गए. तो नागनाडोह में क्या स्थिति है? इस बात की जानकारी सभी लोगों को हो गई. यहां के लोग बांस काटने का काम करते हैं. वे जंगल में मोहफूल तोड़कर, टेंभुर्णी के पत्ते तोड़कर और डिंक इकट्ठा करके और कुछ खेती करके अपना जीवनयापन करते हैं.
राजस्व विभाग की अनदेखी
ये लोग फिलहाल बोरटोला और तिरखुरी में रह रहे हैं. अब भी सरकार ने उन्हें घरकुल नहीं दिया है. वन विभाग ने प्रत्येक परिवार को 1 लाख 20 हजार रु. दिए. उनके बेघर होने के बाद करीब तीन महीने तक वन विभाग ने उनके लिए भोजन की व्यवस्था की थी. लेकिन राजस्व विभाग इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है. वे मांग कर रहे हैं कि सरकार उनका पुनर्वास करें और उन्हें भरण-पोषण का साधन मुहैया कराए.