खराब टीवी को ठीक करने के लिए पैसे नहीं
गोंदिया. महाराष्ट्र सरकार ने 22 जून 2014 को एडवांस्ड एजुकेशन महाराष्ट्र गतिविधियां पारित किया. जिससे हर छात्र को बेहतर शिक्षा देने की प्रक्रिया तेज हो गई. इससे जिला परिषद स्कूलों के प्रति समाज का दृष्टिकोण बदल गया. परिणामस्वरूप स्कूल जनउन्मुख बन गए. जो स्कूल आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे, उन विद्यालयों के उत्थान के लिए करोड़ों की जनभागीदारी प्राप्त हुई. बीड़ी उद्योग, महुआ फुल बेचना, लाख संग्रहण जैसे पारंपरिक कार्यों से जीविकोपार्जन करने वाले अभिभावकों ने स्कूलों के उत्थान में यथासंभव मदद की. गोंदिया जिले में वह सहायता 4 करोड़ 14 लाख 20 हजार रु. की हुई. लेकिन डिजिटल स्कूल बनाने के लिए लाए गए एलसीडी खराब होने लगे हैं.
गोंदिया महाराष्ट्र के पूर्वी सिरे पर एक आदिवासी बहुल और नक्सल प्रभावित जिला है. हिंदी भाषी मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्य की सीमा से लगा होने से बोली पर हिंदी भाषा का प्रभाव होने के कारण मात्र 5 हजार 431 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाला यह जिला हर दृष्टि से विविधतापूर्ण है. हालांकि प्राथमिक शिक्षा के सशक्तिकरण के लिए बीड़ी उद्योग में काम करने वाले लोग और मजदूर एक साथ आए और जिले का चेहरा बदलने के लिए बहुमूल्य समर्थन दिया. हर बच्चे को सीखने के अभियान ने सभी स्कूलों के विकास के लिए एक आंदोलन को जन्म दिया. नॉलेज कंस्ट्रक्टिव स्कूल, डिजिटल स्कूल, वाचनकुटी, रंग-रोगन, हैंडवाश स्टेशन, आवार भिंत, पीने का पानी, प्री-प्राइमरी कक्षा, एलईडी प्रोजेक्टर इंटरैक्टिव बोर्ड, साउंड सिस्टम, टैबलेट स्टेज आदि के लिए जिले में बड़ी जनभागीदारी से धन जुटाया गया. लेकिन इन डिजिटल स्कूलों में लगे एलसीडी अब खराब हो रहे हैं. एक बार बंद हो जाने पर एलसीडी को दुबारा शुरू करने का नाम नहीं लिया जाता. कुछ एलसीडी के तार चूहों ने कुतर दिए हैं. इस ओर कोई ध्यान देने को तैयार नहीं है.
जनभागीदारी से 4.14 करोड़ जुटाये
गोंदिया जिले के पूरे जिला परिषद के स्कूलों को डिजिटल बनाने में जिले भर के अभिभावकों और शिक्षा प्रेमियों ने बढ़-चढ़कर मदद की. शैक्षणिक सत्र 2015-16 में 96 लाख 70 हजार तथा सत्र 2016-97 में 3 करोड़ 17 लाख 50 हजार रु. ऐसे कुल 4 करोड़ 14 लाख 20 हजार की धनराशि जुटाकर विद्यालयों को उच्च गुणवत्तायुक्त बनाया गया. लेकिन उचित रखरखाव योजना के अभाव में हजारों एलसीडी बंद हो गए हैं.